सिंगाही-खीरी। रमजान शरीफ को लेकर मुसलिम युवाओं की दिनचर्या बदली हुई है।
पूरे साल मस्ती में गुजारने के बाद जब रोजों का महीना शुरू हुआ, तो युवाओं की
जिंदगी के अंदाज भी बदल गए। अमूमन सुबह देर तक सोने वाले नौजवान इन दिनों भोर सहरी
में ही उठ जाते हैं। पांच वक्त की नमाज अदायगी के साथ ही तरावीह नमाज में शरीक हो
रहे हैं।
युवाओं ने बताया कि एक माहे मुबारक को लेकर बड़ा एहतराम है। सिंगाही नगर
पंचायत के युवा सभासद मसूद खान का मानना है कि पूरे साल गुनाहों से घिरे इंसान के
सामने यही एक महीना है जो निजात दिलाने का मौका लेकर आता है। आम तौर पर पांचों
वक्त की नमाज पढने में लोग हीलाहवाली कर जाते हैं। कहा कि कई वर्षों से सारे रोजेे
और सारी तरावीह हो रही हैं। वहीं युवा दुकानदार इमरान मानू का कहना है कि वह पिछले
कई वर्षों से रोजेे और तरावीह पूरी पाबंदी के साथ अदा करते आए हैं।
यह महीना बरकतों और रहमतों का है। जब हर तरफ सवाब कमाने की होड़ है तो भला
युवा क्यों पीछे रहें। तालिब अंसारी ने बताया कि रमजान में भले ही ईद के मद्देनजर
उनकी मसरूफियत बढ़ जाती है। पर रोजों के महीने की बरकत बाद में कहां मिलने वाली
हैं। जवान शरीर रखते हैं, हाथ-पांव सलामत हैं। फिर क्यों न अल्लाह को इन बेशकीमती
नेमतें अदा करने को शुक्र बजा लिया जाए।
वार्ड न 7 के सरताज अंसारी कहते हैं रमजान के रोजे रूह और जिस्म दोनों को
पाकीजगी अता करते हैं। उन्होंने कहा कि रोजे में माहौल में नूरानी तब्दीली आती है।
सभी साथी रोजे से होते हैं। इफ्तार और सहरी की रौनकें देखने का साल भर इंतजार रहता
है। तरावीह बाद होटलों पर चाय, कोल्ड ड्रिंक और फिर बाइकिंग का लुत्फ अपना अलग ही
मजा रखता है।
खतीब खान ने कहा कि तीस रोजेे के बदले सलामती का सौदा बहुत सस्ता है।
इसलिए रमजान में पूरे माह रोजे रखना उन्होंने अपने जीवन का हिस्सा ही बना लिया है
फिर यह कहा भी गया कि बुढ़ापे की इबादत से खुदा को जवानी में की गई इबादत ज्यादा
पसंद है।
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